Last updated on November 5th, 2024 at 12:25 pm
गोवर्धन पूजा, गोबरधन पूजा, अन्नकूट उत्सव पर विशेष हिन्दी कविता
गोवर्धन पूजा का आया ये त्योहार
माँ धरती ने किया यहां अद्भुत श्रृंगार
उत्सव अन्नकूट से हो रही खुशी अपार
आओ मिलकर मनाएं हम सब त्योहार
श्रीकृष्ण जब ये बांसुरी मधुर बजाएंगे
गोप गोपियां बनकर हम आनंद उठाएंगे
नहीं किसी से भी लजाएंगे न ही शर्माएंगे
ये दृश्य देख के देवी देवता धरा पे आयेंगे
अंगना में है ढोल बजे मन में भक्ति छाई
गीत गा कर दे रहीं बहनें सबको ये बधाई
पूजा के थाल सजे हैं गोबर से हुई लिपाई
हाथ जोड़ कर गौमाता को तिलक लगाई
प्रेम का संकल्प है पूजा ये गोवर्धन की
भक्ति में विश्वास और आत्मसमर्पण की
उच्च आदर्शों वाले कर्म सत्कार वंदन की
यही प्रबल इच्छा है कृष्ण देवकी नंदन की
गौसेवा से पुण्य मिलेगा हरियाली आयेगी
धरती कुसुमित होकर झूमेगी मुस्कुराएगी
गोवर्धन का संदेश हरेक जिह्वा दोहराएगी
‘दीप’ सेवा से इनकी सृष्टि भी सुख पाएगी
-दीपक कुमार ‘दीप’
गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट या गोवर्धन प्रतिमा भी कहा जाता है, ये पूजा भगवान श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा में मनाया जाने वाला ये पर्व विशेष रूप से हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, इसे बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
मनाने का कारण
दीवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला ये त्योहार, मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्ण जी की की कथा से जुड़ी हुई है। एक बार जब देवराज इन्द्र गोकुलवासियों से नाराज़ हो गए और मूसलाधार बारिश करके समस्त गोकुलवासियों को दंडित करने का निर्णय लिया, तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर पूरे गोवर्धन पर्वत उठा लिया। सभी गोकुलवासी गोवर्धन की छत्रछाया में सुरक्षित हो गए, इधर इन्द्र देव अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए कई दिनों तक मूसलाधार बारिश करते रहे, भयंकर ओले बरसाए पर किसी का कोई भी नुक्सान नहीं हुआ।अभिमान के वशीभूत इन्द्रदेव को बाद में अहसास हुआ कि उनकी गलती थी। इस घटना के बाद, गोकुलवासियों ने भगवान श्री कृष्ण की पूजा की और गोवर्धन पर्वत की आराधना की।
तभी से लगातार आज तक लोग इसे बड़ी धूम धाम से मनाते चले आ रहे हैं, इस दिन लोग सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं। घरों में और घरों के बाहर मिट्टी, गोबर या चावल से पर्वत की आकृति बनाई जाती है और पूजा की जाती है। मिठाइयों, फल, और अन्न का भोग भी भगवान को लगाया जाता है। इसे ‘अन्नकूट’ भी कहा जाता है।
समाज में प्रेम, एकता और समर्पण का संदेश देने वाला ये त्योहार भगवान श्री कृष्ण जी की भक्ति का भी द्योतक है। इसमें सम्मलित होने वाले सभी लोग आनंद और खुशियों के साथ साथ नृत्य एवं गीत भी गाते हैं। ये त्योहार, हमें अपने संस्कृति और परंपराओं की याद दिलाता है और जीवन में सकारात्मकता का संचार करता है।
इसका महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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