Ek Zinda Shahar Hoon Main | True Life Of Metro Cities | शहर पर कविता

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उस राह से नहीं अंजान ना ही बेखबर हूं मैं
चले आना देखने मुझे एक जिंदा शहर हूं मैं

भागमभाग लगी हुई है हर चेहरा मुरझाया है
मकड़ी के जाल सा ख़ुद को ही उलझाया है
ख़्वाब पीले पड़े हैं एक मंजिल की तलाश में
घुट रहा दम यहां खो कर सुकून की प्यास में
दिन क्या रात भी दौड़ लगाती बेसुध हो कर
थोड़ी देर आराम कर लो परिश्रम का घर हूं मैं

उस राह से नहीं अंजान ना ही बेखबर हूं मैं
चले आना देखने मुझे एक जिंदा शहर हूं मैं

शहर की ज़िन्दगी पर कविता
शहर की ज़िन्दगी पर कविता

हवाओं में भी जंग लगी आसमान भी काले हैं
बिना मौसम बरसात यहां मेघ ज़रा मतवाले हैं
धूल धुएं व शोर शराबे में फीका सारा मंजर है
मुंह पर लाग लपेट पर बगल में रहता खंजर है
भय के साए में बीत रहा जीवन का हर पल है
भीड़ के सन्नाटे में पसरा सुनसान डगर हूं मैं

उस राह से नहीं अंजान ना ही बेखबर हूं मैं
चले आना देखने मुझे एक जिंदा शहर हूं मैं

Shahar Par Hindi Kavita
Shahar Par Hindi Kavita

ना मैं रुका ना थका कभी है ऐसी मेरी कहानी
नज़रिया बयां कर रही अनछुए पल की जुबानी
मेहमान बन कर ही सही दो पल साथ बिताओ
निराश नहीं करूंगा मैं कभी मेरे पास तो आओ
तुम्हें मंजिल भी मिलेगी शोहरत के अंबार मिलेंगे
मेरे संग संग चलो प्रगति का बेताज़ सफ़र हूं मैं

उस राह से नहीं अंजान ना ही बेखबर हूं मैं
चले आना देखने मुझे एक जिंदा शहर हूं मैं

-दीपक कुमार ‘दीप’

इंसान जब इस धरती पर जन्म लेता है तो हर किसी के हृदय में एक ही अभिलाषा होती है, वो धनवान हो, स्वस्थ हो और ज़िन्दगी ऐश-ओ-आराम हो। जिसकी ख़ातिर आदमी ना जाने किन किन गाँव से शहरों तक का सफ़र करता है, दिल में बस एक ही अरमान लिए, ये नौकरी, कारोबार मिल जाए बन जाए, नाम हो जाए पहचान बन जाए वगैरह वगैरह। परन्तु ज़िन्दगी इतनी आसान नहीं होती संघर्ष से सफलता का रास्ता कई मुश्किल चुनौतियों और समस्याओं से हो कर गुजरता है। खाना खाने के लिए भी काफी परिश्रम करना होता है, ज़िन्दगी भी वैसी ही है।

“एक जिंदा शहर हूं मैं” इस कविता के माध्यम से शहरों की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी और सफलता के नए आयाम को जोड़ा है, जहाँ हर कोई अपनी जगह औरों से अलग बनाने में लगा हुआ है, मैंने भी ज़िंदगी के कई रंग नए अनुभवों को बहुत क़रीब से देखा है। जहाँ हर एक गली/सड़क की एक नई कहानी है, हर चेहरा एक नई उम्मीद और नई संभावनाओं की तलाश में रहता है।

एक जिंदा शहर हूं मैं
एक जिंदा शहर हूं मैं

इसलिए मैं आपको आमंत्रित करता हूँ और निवेदन है कि, आइए इस जिंदा शहर की सैर करें, यहाँ की खुशियों को महसूस करें, यहां के दर्द को समझें और यहाँ की हर एक खूबसूरती को अपनी आँखों में बसा लें। मैं चाहता हूँ कि आप मेरे साथ कविता के इस सफर पर चलें, ताकि हम मिलकर इस शहर की रूह को बेहतर तरीके से समझ सकें और इसे एक नई पहचान दे सकें, क्योंकि यहाँ हर पल कुछ नया है, और हर दिन एक नया मौका है खुद को खोजने का।

-प्रिय पाठकों से निवेदन

आपको मेरी ये कविता कैसी लगी, कृप्या कमेंट करके ज़रूर बताएं, आप अपने दोस्तों, सगे सम्बन्धियों को भी अवश्य शेयर करें, आपके सुझाव का स्वागत है। आपके कमेंट से मुझे और बेहतर लिखने और अच्छा करने का मौका मिलेगा। एक कलाकार, लेखक, कवि, रचनाकार की यही इच्छा होती है कि लोग उसके किए कार्यों को सराहें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को वो अपनी रचना शेयर कर सके।

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About Post Author

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दीपक कुमार 'दीप' http://chaturpandit.com वेबसाइट के ओनर हैं, पेशे से वीडियो एडिटर, कई संस्थानों में सफलतापूर्वक कार्य किया है। लगभग 20 वर्षों से कविता, कहानियों, ग़ज़लों, गीतों में काफी गहरी रूचि है। समस्त लेखन कार्य मेरे द्वारा ही लिखे गए हैं। मूल रूप से मेरा लक्ष्य, समाज में बेहतर और उच्च आदर्शों वाली शिक्षाप्रद कविता , कहानियां, लेख पहुंचाना है। आप सभी का सहयोग अपेक्षित है।
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