मंथन | MANTHAN | एक आत्मीय अहसास बेहतर इंसान बनने के लिए, ज़रूरी है कि हम क्या सोचते हैं और क्या करते हैं। उसमें कितनी सत्यता है और कितना आडम्बर, इन दोनों का सत्य ईश्वर के साथ साथ इंसान भी अपनी अन्तर्रात्मा द्वारा जानता है।
नज़दीक हों फिर भी पास हों ये ज़रूरी तो नहीं।
दिल्लगी हो या मुहब्बत कहीं ये मजबूरी तो नहीं।।
उभरी हैं शक्ल पर अजीब सी बेचैनी और शिकन।
परख लें अपनी हसरतों को कहीं अधूरी तो नहीं।।
सुख दुःख के रंग एक जैसे रहते नहीं साथ कभी।
बिता दी है ज़िंदगी हमने आधी हैं ये पूरी तो नहीं।।
मन से मानो तो नज़दीक भी लगता है बहुत दूर।
अस्तित्व की बात है तो फिर ये कोई दूरी तो नहीं।।
बन सकें वजह जो सभी के लबों पर मुस्कान की।
इससे बेहतर कुछ नहीं यहाँ बात ये बुरी तो नहीं।।
-दीपक कुमार ‘दीप’
मंथन
MANTHAN (मंथन) जिसे हम Brainstorm भी कहते हैं, कविता के माध्यम से मैंने एक अन्तर्रात्मा की आवाज़ को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है, जो मनुष्य के आत्मीय अहसास से प्रेरणा लेकर एक बेहतर इंसान बनाने के लिए, ज़रूरी क़दमों में से एक है। वस्तुतः हम सभी अपने हाव भाव से किसी भी चीज को करने और ना करने के प्रति अपने व्यवहार का प्रदर्शन कर ही देते हैं। हम क्या सोचते हैं और क्या करते हैं ये हमारे मानसिक व शारीरिक सोच और क्रियाकलापों पर निर्भर करता है। उसमें कितनी सत्यता है और कितना आडम्बर, इन दोनों बातों का सत्य ईश्वर के साथ-साथ इंसान भी अपनी अन्तर्रात्मा द्वारा जानता है।
‘नज़दीक हों फिर भी पास हों ये ज़रूरी तो नहीं।‘
कई बार आपने अवश्य महसूस किया होगा कि आपका शरीर कहीं और है और मन कहीं और है, जहाँ हमें मन से मौज़ूद रहना चाहिए वहां हम शरीर से मौज़ूद रहते हैं और जहाँ शरीर से मौज़ूद रहना चाहिए वहां मन से रहते हैं। कारण स्पष्ट है “रूचि, जिसे हम अंग्रेजी में Interest” भी कहते हैं, ये सबसे महत्वपूर्ण है, उदहारण के लिए- जब हम कहीं कोई फिल्म देखने जाते हैं अथवा फिल्म देखते हैं तो हम उस फिल्म के अलावा अपने दिमाग में कुछ नहीं सोचते, अपना पूरा ध्यान हम फिल्म के एक एक सीन पर लगा देते हैं पूरा फोकस फिल्म पर होता है, शरीर पूरी तरह से एकाग्र, उत्साहित और रोमांचित होता है, प्रत्येक दृश्य को देखकर। अब बात करते हैं रिश्तों की, आचार, विचार, व्यवहार के माध्यम से हम अपनी बात सामने वाले तक आसानी से पहुंचा देते हैं कि हमारी आप में कितनी रूचि (Interest) है। इसलिए मंथन बहुत ज़रूरी है प्रत्येक काम को सही ढंग से करने के लिए, फिर चाहे वो रिश्ते नाते ही क्यों न हो। ये हरगिज़ ज़रूरी नहीं है कि हम कहीं पर फिजिकली (Physically) अर्थात शारीरिक रूप से उपस्थित हों और हमारा ध्यान हमारा मन भी उस जगह पर हो। किन्तु जब आप मंथन करते हैं अपनी आत्मा द्वारा अपने प्रत्येक कार्यों के प्रति तो पाते हैं कि कहाँ त्रुटि रह गई है।
मंथन: अपनी सोच व कर्तव्यों का
हमें इस बात पर मंथन (MANTHAN) अवश्य करना चाहिए कि हम कौन कौन से ऐसे कार्य है, जिन्हें करते हैं तो दूरियां पैदा हो जाती हैं और ऐसे कौन से कार्य हैं जिससे हम किसी के करीब आते हैं। आत्ममंथन इसलिए भी आवश्यक है क्यूंकि इससे व्यक्ति अपने द्वारा किये गए हर एक काम को बहुत ही गहराई से सोचता है और उससे होने वाले प्रभाव और दुष्प्रभाव के बारे में। ये सब कुछ होता है मंथन (MANTHAN) द्वारा आत्ममंथन द्वारा।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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