माँ याद तुम्हारी आती है | Best Mother’s Day Poem 2025 | माँ पर कविता | Maa Par Kavita
जब दीप जले आंगन में, याद तुम्हारी आती है
तुम्हें सामने ना पाकर, ये आँखें नम हो जाती हैं
भूल जाऊं मैं तुम्हें, ऐसा कोई पल ना गुजरा है
आँखें बंद करूं खोलूँ, बस तेरी याद सताती है
सूरज की तरह चमकना , आपका भी सपना था
किया कुर्बान मेरी ही ख़ातिर, ये बात रुलाती है
आँखों में बरसात लिए, बरस रहा ना जाने कब से
सिहर उठूँ तो मन्द हवा, छूकर मुझे सहलाती है
दफ़्न हैं कई ख़्वाब माँ, आज भी ‘दीप’ के सीने में
कितने मौसम बीते, हर शाम अंधेरों में खो जाती है
-दीपक कुमार ‘दीप'(Deepak Kumar ‘deep’)
माँ याद तुम्हारी आती है
When the lamp is lit in the courtyard, I remember you
When I don’t find you in front of me, my eyes become moist
I have never had a moment where I forget you
Whether I close my eyes or open them, I am haunted by your memory
It was also your dream to shine like the sun
You sacrificed yourself for my sake, this makes me cry
With rain in my eyes, it has been raining for who knows how long
When I shiver, the gentle breeze touches me and caresses me
Many dreams are buried, mother, even today, in the heart of ‘Deep’
How many seasons have passed, every evening gets lost in darkness
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न जाने उनके हाथों में कितनी लज्जत थी
कुछ भी बनाती खाने को तो उंगलियां चाट लेते थे
आज ये बनाना कल वो बना देना कह कर
हम आपस में ही घर का सारा काम बांट लेते थे
खुशी व गम में छलक पड़ते आंसू आंखों से
जैसे भी हों हालात हम खुशी खुशी काट लेते थे
अब न वो आंगन है न आंचल है सूनी दर ओ दीवार है
माँ बहुत याद आती हैं आप बिन तेरे ये सूना संसार है
चमक उठती थी आँखें जब बाहें फैलाकर गले लगाती
चूम कर मेरी पेशानी मां आप फूले नहीं समाती थी
इंटरव्यू हो या कोई एग्जाम घर से बाहर जब भी जाता
सफल होने के टिप्स देकर तिलक लगा दही खिलाती थी
चोट लगती जब कभी अरे मेरे लाल कहकर न जाने
क्या कुछ नहीं करती गोद में रख कर सर मेरा सहलाती थी
अच्छी नहीं लगती होली दिवाली अब फीका हर त्योहार है
माँ बहुत याद आती हैं आप बिन तेरे ये सूना संसार है
माँ बहुत याद आती हैं
माँ की कमी जिस बच्चे को है यूँ कहें जिसके सर पर माँ की छाया ना हो, वो ही व्यक्ति इस कमी को बखूबी समझ सकता है, माँ शब्द अपने आप में एक पूरी सृष्टि है, जिसके आगे भगवान भी फीके लगते हैं, ऐसा है दर्ज़ा। मैं अपनी इस कविता के माध्यम से अपनी माँ को श्रद्धांजलि दे रहा हूँ और दुनिया में ऐसे और भी कई लोग हैं जिनकी माँ इस दुनिया में नहीं हैं, उनके लिए भी मेरे ह्रदय में बहुत आदर और सम्मान है, वो भी मेरी इस कविता के माध्यम से अपनी माँ को श्रद्धांजलि अवश्य दें, यदि आपको उचित लगे तो। माँ बहुत याद आती हैं आप, इस याद के साथ जीवन का हर लम्हां, बीत रहा है।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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-Request to dear readers
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