हक़ीक़त का आईना | ये ज़रूरी तो नहीं | Thoughtful Poetry

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Last updated on November 18th, 2024 at 09:59 am

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हक़ीक़त का आईना | Thoughtful Poetry | समाज में बदलते परिवेश को देखते हुए प्रस्तुत है मेरी कविता-

नज़दीक हों फिर भी पास हों ये ज़रूरी तो नहीं
दिल्लगी हो और मुहब्बत भी ये मजबूरी तो नहीं

उभरी हैं शक्ल पर अजीब सी बेचैनी और शिकन 
परख लें अपनी हसरतों को कहीं अधूरी तो नहीं

सुख दुःख के रंग एक जैसे रहते नहीं साथ कभी
बिता दी है ज़िंदगी हमने आधी हैं ये पूरी तो नहीं

मन से मानो तो नज़दीक भी लगता है बहुत दूर
अस्तित्व की बात है तो फिर ये कोई दूरी तो नहीं

बन सकें वजह जो सभी के लबों पर मुस्कान की
इससे बेहतर कुछ नहीं यहाँ बात ये बुरी तो नहीं

-दीपक कुमार ‘दीप’

हक़ीक़त का आईना

आज के दौर में जहाँ हर कोई अपनी एक अलग ही दुनिया में व्यस्त है, नज़दीकियां बढ़ने और बढ़ाने की जगह फासलों ने ले ली है, दूरियों ने ले ली है। यही जीवन का चक्र है जो कभी पास आता है तो कभी दूर चला जाता है। लोग शारीरिक रूप से बहुत पास होते हैं एक दूसरों के फिर भी संकुचित भावनाओं और सोच के कारण पास होते हुए भी दूर हो जाते हैं। पर कभी कभी लोग बहुत ज्यादा दूर होते हुए भी करीब होते हैं, एक दूसरे के मन की भावनाओं को समझते हैं। इसका अर्थ ये नहीं कि नज़दीकी का मतलब हमेशा प्यार और समझदारी नहीं होता।

प्रेम एक शुद्ध भावना है, फिर चाहे वो किसी से भी हो, ईश्वर का भक्त से हो, पति पत्नी से हो, भाई का भाई के साथ हो, बहन का भाई के साथ हो या फिर किसी के साथ भी हो, जब हम प्रेम के वशीभूत होते हैं तो, हमारे मध्य हँसी मज़ाक से लेकर हलके फुल्के और कभी भारी कोलाहल वाले झगड़े भी होते हैं, किन्तु जब बात दिल्लगी की हो तब जहाँ लोग एक दूसरे के साथ समय तो बिताते हैं, हँसी ठिठोली भी करते हैं तब उसकी कोई गारंटी नहीं होती कि वो दिल्लगी किस अवधि तक स्थाई रहेगा।

हर तरफ अधूरी हसरतें (इच्छाएं) लिए हुए दुनिया में हर शख़्स जी है। इसलिए चेहरे पर ऐसे लोगों के तनाव और चिंता की उभरती हुई लकीरों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जहाँ एक ओर सुख और दुःख जैसे प्रतीत होते हुए रंगों का सवाल है, वो दोनों एक साथ कभी नहीं आ सकते। मन से मानों से सब कुछ है न मानों तो कुछ भी नहीं।

निष्कर्ष

सबसे बेहतर और ज़रूरी बात यह है कि हम हमारे जीवन में किसी के हँसने की वजह बन सकूं, ना कि रोने की। इसलिए, रिश्तों की गहराई हमेशा शारीरिक नज़दीकी पर निर्भर नहीं करती। रिश्तों में समझ, समर्पण और भावनाओं की गहराई होना बेहद जरूरी है। इसीलिए, नज़दीकियां भले ही हों, लेकिन अगर दिल में बड़ी दूरी है, तो वो रिश्ते को कमजोर बना सकती है।

-प्रिय पाठकों से निवेदन

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About Post Author

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दीपक कुमार 'दीप' http://chaturpandit.com वेबसाइट के ओनर हैं, पेशे से वीडियो एडिटर, कई संस्थानों में सफलतापूर्वक कार्य किया है। लगभग 20 वर्षों से कविता, कहानियों, ग़ज़लों, गीतों में काफी गहरी रूचि है। समस्त लेखन कार्य मेरे द्वारा ही लिखे गए हैं। मूल रूप से मेरा लक्ष्य, समाज में बेहतर और उच्च आदर्शों वाली शिक्षाप्रद कविता , कहानियां, लेख पहुंचाना है। आप सभी का सहयोग अपेक्षित है।
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