डाकू रत्नाकर से बने वो महर्षि वाल्मीकि
अद्भुत अंतर्यामी अथाह ज्ञान के भंडार
सोच बदलने से है व्यक्तित्व बदल जाता
ऐसी दिव्यात्मा के गुण गाता यह संसार
भूत भविष्य वर्तमान के ज्ञाता थे महर्षि
रामायण को समय से पहले ही लिखा था
सारी घटनाएं भी हुईं हु ब हु वैसे ही जैसे
भगवान वाल्मीकि ने इस ग्रन्थ में कहा था
साधना की ज्योति से किया आलोकित
सिखाया सभी को प्रेम दया मिलवर्तन धर्म
उनकी दृष्टि में राजा प्रजा थे एक बराबर
त्याग और कर्तव्य भावना से किया हर कर्म
भरत की भक्ति माँ सीता की करुण कहानी
आप ना होते श्रीराम चरित्र को कौन बताता
माता शबरी के जूठे बेर रावण जैसी बुराई पे
अच्छाई की जीत का पाठ हमें कौन पढ़ाता
हे वाल्मीकि जी तुम हो सभी के प्रेरणास्रोत
हर जीव में देखो प्रभु को शांति मन में आएगी
दया, करुणा समर्पण की शिक्षा से मानवता भी
खिल उठेगी प्रकृति का कोना कोना मुस्कुराएगी
नवीन सृजन होगा चहुं ओर सुने जो उनकी वाणी
सद्गुण हृदय में आएंगे मिटेगा मन का अभिमान
‘दीप’ महर्षि वाल्मीकि की जयंती पे हम ये प्रण लें
अपना के उनकी शिक्षाओं को करें जन कल्याण
-दीपक कुमार ‘दीप’
संस्कृत साहित्य के पहले कवि और ‘रामायण’ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि जी से ऐसा कौन व्यक्ति है जो परीचित नहीं होगा, प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को समस्त देशवासी उनकी जयंती को बड़े हर्षोल्लास, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं।
वाल्मीकि का जीवन
वाल्मीकि जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। पहले वे एक डाकू थे, लेकिन एक घटना ने उनकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल दिया। एक बार उन्होंने एक ऋषि को डाकू बनने के लिए मजबूर किया, लेकिन उस ऋषि की साधना और आशीर्वाद ने उन्हें आत्मज्ञान दिया। इसके बाद, उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी को बदलने का निर्णय लिया और ध्यान और साधना की ओर बढ़े।
उनकी तपस्या के फलस्वरूप, उन्होंने ‘रामायण’ की रचना की, जो न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का माध्यम भी है। ‘रामायण’ में भगवान राम के आदर्श और जीवन के संदेशों को प्रस्तुत किया गया है, जो आज भी लोगों के जीवन को प्रेरित करते हैं।
वाल्मीकि जयंती का महत्व
वाल्मीकि जयंती का पर्व न केवल वाल्मीकि की महानता को याद करने का अवसर है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में शिक्षा और नैतिकता के प्रति जागरूकता फैलाने का भी एक माध्यम है। इस दिन, लोग वाल्मीकि जी के उद्धरणों और शिक्षाओं का प्रचार करते हैं, और उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।
इस अवसर पर अनेक धार्मिक अनुष्ठान, कीर्तन, और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। लोग अपने-अपने घरों में वाल्मीकि जी की पूजा करते हैं और उनकी महानता का गुणगान करते हैं। विभिन्न समाजिक संगठन भी इस दिन विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसमें वाल्मीकि जी के योगदान को उजागर किया जाता है।
शिक्षा और सामाजिक उत्थान
वाल्मीकि जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक उत्थान का भी प्रतीक है। महाकवि वाल्मीकि ने अपने जीवन में जो सामाजिक मुद्दे उठाए, वे आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी रचनाओं में समाहित सामाजिक न्याय, समानता, और मानवता का संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें समाज में भेदभाव के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
यह पर्व विशेष रूप से दलित समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वाल्मीकि जी ने सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि शिक्षा और आत्मसम्मान के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को बदल सकता है।
समापन
वाल्मीकि जयंती हमारे लिए एक ऐसा अवसर है, जब हम महाकवि की शिक्षाओं को अपनाकर समाज में बदलाव ला सकते हैं। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में सदाचार, नैतिकता, और मानवता के मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। इस प्रकार, वाल्मीकि जयंती न केवल एक पर्व है, बल्कि यह एक प्रेरणा का स्रोत भी है, जो हमें अपने जीवन को और बेहतर बनाने की दिशा में प्रेरित करता है।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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