Last updated on September 19th, 2024 at 02:15 pm
अजीब इत्तेफ़ाक़ है
जिस शक्स का ख़्याल
दिल के आईने में दिखाई देता है
शिकायतों की लड़ियां
गुफ़्तगू सन्नाटे में सुनाई देता है
दहलीज़ गवाही दे रहा
पाज़ेब की थिरकती मुस्कान पर
गुज़ार दी हैं सदियाँ लम्हों की
अरमां हैं आज भी आसमान पर
अजीब इत्तेफ़ाक़ है।।
अंधेरे को चीरता हुआ चाँद
चिराग़ हाथों में लेकर निकल पड़ा
मशरूफ़ था ज़िन्दगी की जंग में
चंद क़ाबलियत से भीड़ में चल पड़ा
अनदेखा करता रहा खुशियों में
बरसने वाली बारिश की ख़नक को
कांच संभालता रहा बड़े अदब से
भुलाकर अनमोल हीरे की चमक को
अजीब इत्तेफ़ाक़ है।।
शाख़ पर बैठे उन परिंदों की तड़प
करवट लेते शाम का आगाज़
धुंधली उम्मीदों के साए में छिपकर
सुनहली सुबह फिर उड़ने का अंदाज़
ज़मी पर लहराते हुए सितारों को
बड़े शौक़ से समाते हुए देखा है
तुम रूह में बसे हो इस कदर मेरे
जुगनू जैसे ख़्वाबों में आते हुए देखा है
अजीब इत्तेफ़ाक़ है।।
दीपक कुमार ‘दीप’
कठिन शब्द-
गुफ़्तगू– बातचीत, सन्नाटे– एकांत, दहलीज़– चौखट, मशरूफ़– व्यस्त
कविता का सारांश | criticism shayari in hindi
उपरोक्त कविता का सारांश ये है कि, हम सभी लोग पूरी ज़िन्दगी को गिले शिकवों में ज़्यादा और खुशियों में कमी करके गुजार देते हैं, ख़ुश हो कर जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। हम जिसके ऊपर भी भरोसा करते हैं विश्वास करते हैं उनको साथ लेकर हर एक क्षेत्र में अपने कार्य को उसके उच्तम शिखर तक पहुंचाने का अनवरत प्रयास करना चाहिए।
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