Last updated on November 1st, 2024 at 08:49 am
छठ पर्व की बेला है, खुशियों से धरती फूली ना समाई
सूरज की किरणों ने, उतर कर नदियों में डुबकी लगाई
उड़े मिट्टी की सोंधी खुशबू, बिखरे सुनहरे रंग
रोम रोम खिल उठा हृदय में, उठने लगी उमंग
सजने लगे घाट नदी तालाब, सजे हाट बाज़ार
चहल पहल बढ़ी क़दमों में, सजे घर आंगन द्वार
नहा धो सज धज के, अम्मा दीदी घी के ठेकुआ बनाई
बाजार से भाभी चाची, नारियल फल नींबू गन्ना मंगाई
छठ पर्व की बेला है, खुशियों से धरती फूली ना समाई
सूरज की किरणों ने, उतर कर नदियों में डुबकी लगाई
छठ पूजा है भक्ति का, संतान सुख समृद्धि लाती
आस्था के त्योहार पर, छठी मईया के गीत गाती
कमी ना रहे जीवन में, छठ माई से मांगे आशीष
सिंदूर भर कर मांग में, जोड़ हाथ झुका के शीश
गंगा घाट चले, भईया उठाए दउरा, ढोल बजे शहनाई
उत्सव ये अद्भुत लगे, हर ओर ख़ुशी और उमंग है छाई
छठ पर्व की बेला है, खुशियों से धरती फूली ना समाई
सूरज की किरणों ने, उतर कर नदियों में डुबकी लगाई
बांस के दउरा सूप में, फल और फूल सजाए
चार दिनों के पर्व में, है पहला दिन नहाए खाए
खरना पड़ाव दूसरा, दिन भर रख कर उपवास
खीर प्रसाद गुड़ का, खा करें निर्जला उपवास
संध्या अर्घ्य दिन तीसरा, व्रती सूर्यदेव को जल चढ़ाई
उषा अर्घ्य चौथे दिन, पारण कर देते हैं छठ को विदाई
छठ पर्व की बेला है, खुशियों से धरती फूली ना समाई
सूरज की किरणों ने, उतर कर नदियों में डुबकी लगाई
दीपक कुमार ‘दीप’
दीवाली त्योहार के बाद अगर सबसे ज्यादा किसी पर्व या त्योहार की चर्चा होती है, तो वो है “छठ”। छठ पर्व मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के हिस्सों में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला ये पर्व सूर्य देवता और छठी मईया के लिए समर्पित है। इस पर्व का उद्देश्य मुख्य रूप से सूर्य देव से स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्रार्थना करना है। यह पर्व माताओं द्वारा अपने बच्चों के कल्याण के लिए मनाया जाता है।
व्रत की शुरुआत पहले दिन “नहाय-खाय” के साथ शुरू होती है, जिसमें व्रती भक्त स्नान करके विशेष भोजन जिसमें नमकीन युक्त और मीठा हो, उसका सेवन करते हैं, और ठेकुआ प्रसाद बनाते हैं, ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वाले लोग इस दिन अपने घर के आंगन को गंगा जल, गोबर से स्वच्छ करके और सभी प्रकार के फल घर ला कर पूजा की तैयारी की जाती है। दूसरे दिन को “खरना” कहा जाता है, जिसमें व्रत करने वाली महिलाएं उपवास रखकर विशेष पकवान बनाती हैं, जैसे गुड़, चिउड़े और खीर। इस दिन उपवास रखने वाले लोग सूर्यास्त के समय भगवान की आरती करते हैं और प्रसाद वितरित करते हैं।
तीसरे दिन को “संध्या अर्घ्य” कहा जाता है। इस दिन भक्त सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या किसी अन्य जलाशय के किनारे एकत्रित होते हैं। वे सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं, जिसमें दूध, पानी, फल, शहद, और अन्य नैसर्गिक चीजें भेंट करते हैं। यह एक भव्य दृश्य होता है, जब महिलाएं साड़ी पहन कर आभूषणों से स्वयं को सुसज्जित करती हैं और थाल में पूजा सामग्री लेकर जल में अर्घ्य देती हैं।
चौथे दिन यानि अंतिम दिन को “प्रभात अर्घ्य” या “उषा अर्ध्य” भी कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले पुनः जल में खड़े हो कर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि इसे छठ पर्व का अंतिम दिन भी माना जाता है। अर्घ्य देने के बाद भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं और इस तरह ये पर्व की समाप्ति होती है।
छठ पर्व का एक लोक भावना से युक्त सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व का त्योहार है। ये पर्व परिवार और अपने निकटतम सेज सम्बन्धियों को एक स्थान पर एकत्रित करता है, जिससे आपसी संबंधों में भी मजबूती आती है और रिश्तों में मिठास भी। इस पर्व के दौरान लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, और मिल-जुलकर इसका आनंद लेते हैं।
इस प्रकार, छठ पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
।। आप सभी को छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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