वीर बाल दिवस, चार साहिबजादों, जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत की याद में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 9 जनवरी को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर 26 दिसंबर को प्रतिवर्ष ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी। ‘वीर बाल दिवस’ सिख धर्म के प्रति समर्पण और दृढ़ता का प्रतीक है।
वीर बाल दिवस का दिन खास आया
समर्पण त्याग देखकर दिल भर आया
शहादत दे दी जिसने प्राणों की अपने
जब ज़िंदा उन्हें दीवारों में था चिनवाया
सच्चाई के लिए लड़े हिम्मत नहीं हारे
गुरु गोबिंद सिंह जी के थे प्यारे दुलारे
प्राणों की भिक्षा हरगिज़ नहीं मांगे वो
हँसते हँसते साहिबजादे झूल गए सारे
उन्हें लगा बेहतर मौत को गले लगाना
नामंजूर शमशीर के आगे सर झुकाना
वीरता के अद्भुत उदाहरण दिए उन्होंने
गुलामी से अच्छा हँसते हुए मर जाना
आज भी सिहर उठते लोग उस मंज़र से
एक नहीं कई ज़ख्म दिए उन्हें खंज़र से
क्रूरता की सारी हदें लांघ कर उन वीरों
को चिनवा दिया जिन्दा ईंट पत्थर से
देश ना भूले कभी ये तप त्याग बलिदान
न झुके आगे बेशक गवां दी अपनी जान
साहिबजादों की शहादत पे करें संकल्प
जीएं तो शान से मरे भी तो मिले सम्मान
सच्चाई की राहें चुनें दिखा प्रेम व त्याग
सफलता की लगनी चाहिए दिल में आग
झुको तो बस अपनी माटी अपने देश पर
हों दुश्मन चाहे जितने भी देख जाएंगे भाग
है संदेश यही आज वीर बाल दिवस पर
देश से बड़ा कुछ नहीं चाहे घर या हो सर
देशभक्ति के गीत ही गूंजे हर एक हृदय में
नमन है वीरों को जिनसे डर भी गया डर
–दीपक कुमार ‘दीप’
वीर बाल दिवस
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के चार साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत के उपलक्ष्य में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9 जनवरी को श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी की जयंती पर 26 दिसंबर को प्रतिवर्ष ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। वीर बाल दिवस सिख धर्म के प्रति समर्पण और दृढ़ता का प्रतीक है। मुगलों की सेना में औरंगजेब को धूल चटाने वाले चार साहिबजादे बेशक बहुत ही छोटी उम्र के थे, पर उन्होंने मृत्यु को गले लगाना मंज़ूर किया, बजाए दुश्मनों के आगे सर झुकाने के। अपनी ताकत का लोहा मनवा कर अपने सिख धर्म की लाज रखी। इस दिन को चार साहिबजादे बलिदान दिवस के नाम से भी जानते हैं।
प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को मनाया जाता है वीर बाल दिवस
मुग़ल धर्म अपनाने से इन्कार करने पर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को मुगलों ने ज़िन्दा ही दीवार में चिनवा दिया था। उनका तप त्याग और बलिदान आज इतिहास के पन्नों में अमर है क्योंकि इतनी छोटी सी उम्र होने के बावज़ूद वे किसी के आगे झुके नहीं थे। चाहे उनके पूरे परिवार को ना जाने कितनी भयंकर यातनाएं दी थी। इस दर्दनाक व्यथा को हँस कर स्वीकार करने वाले बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी के बलिदान के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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