प्रकृति से खिलवाड़ करके अपने फायदे का लिए मनुष्य ने सारी सीमाएं लांघ दी हैं। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है जो इंसान ने अपनी खुदगर्ज़ लालसाओं की खातिर नष्ट ना किया हो।
हर ओर है दूषित वातावरण
सभी लोग इसके कब्ज़े में हैं
करके मर्यादाओं का उलंग्घन
सोच रहे लोग वो मजे में हैं?
फल सब्ज़ी हवा पानी मिट्टी
ज़िन्दगी में जहर घोल रहे हैं
प्रकृति से खिलवाड़ कि जिसे
ग्लोबल वार्मिंग बोल रहे हैं
प्रदूषण से ही हर किसी का
दम घुटता चला जा रहा है
कहीं नुकसान प्रकृति का व
ग्लेशियर पिघला जा रहा है।
असहज जीवन जी रहे लोग
दौलत ने अंधा बना दिया है
सुकून औरों के छिनने का
हर रोज धंधा बना लिया है
बेग़ैरत हैं वो लोग जिनके हैं
मस्तिष्क में प्रदूषित विचार
बर्बाद कर देंगे मंज़र सारा
नष्ट हो जायेगा सारा संसार
–दीपक कुमार ‘दीप’
प्रकृति से खिलवाड़
अपने लाभ के लिए मनुष्य ने अब सारी सीमाएं लांघ दी हैं। कोई भी क्षेत्र ऐसा अब नहीं बचा है जो इंसान की अपनी खुदगर्ज़ लालसाओं से नष्ट ना हुआ हो। ये भी लाज़मी है कि विकास भी अत्यंत आवश्यक है, किन्तु जो भी विकास हो रहा है, वो आज समय की मांग है, इससे कत्तई इंकार नहीं किया जा सकता है।परन्तु जहाँ पर सुधार हो सकता है, वहां हमें इस ओर पहल अवश्य करनी चाहिए, चाहे वो कृषि का क्षेत्र हो, जल का क्षेत्र हो, वायु का क्षेत्र हो, इस पर तो हम विचार कर ही सकते हैं। क्या हम रासायनिक खेती से जैविक और प्राकृतिक खेती की तरफ नहीं बढ़ सकते? क्या हम कूड़े कचरे को कूड़ेदान में भी नहीं फेंक सकते? क्या हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट (सार्वजनिक परिवहन) का उपयोग नहीं कर सकते? क्या पराली जलाना आवश्यक है? इसका भी कोई और विकल्प खोजा जा सकता है। यदि हम सभी लोग अपनी आदतों में थोड़ा भी सुधार कर लेते हैं तो उसका बहुत बड़ा परिवर्तन हमें ज़िन्दगी में दिखाई देगा। प्रकृति से खिलवाड़ करने के ही नतीज़ा आज भारत ही नहीं समूचा विश्व भुगत रहा है, जब बाढ़, सूखा, आकस्मिक मृत्यु, महामारी और भी कई प्रकार के घातक रोग हो रहे हैं, जिससे समस्त संसार में हाहाकार मचा हुआ है।
दूषित वातावरण
इस दूषित वातावरण में आप स्वस्थ रहने की कल्पना भी भला कैसे कर सकते हैं। जहाँ एक ओर प्रकृति से खिलवाड़ करके लोग यह सोच रहे हैं की वो बड़े मज़े से रह लेंगे, तो कदाचित ये उनकी बहुत बड़ी भूल है, जो उन्हें आज नहीं तो कल अच्छे से समझ में आ जाएगी।
ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता ख़तरा
आज पूरे विश्व में एक ही टॉपिक सबसे पहले किसी भी मंच से उठाया जाता है वो है “ग्लोबल वार्मिंग”। बात होती है ग्लेशियर के लगातार पिघलने की। बात होती है अब Sustainable Development की। क्यूंकि लोग अब अच्छे से समझ रहे हैं यदि पर्यावरण का, प्रकृति का किसी भी रूप में नुक्सान होगा तो उसका असर सम्पूर्ण मानव जाति पर दिखाई देगा।
निष्कर्ष
इस कविता के माध्यम से यही बात कहने का प्रयास किया है, कि बहुत देर हो चुकी है, लगातार ख़त्म हो रहे जंगल, पेड़, पहाड़, प्रदूषित हो रहीं नदियां, झीलें। हमें इस ओर अपना ध्यान आकर्षित करना होगा, तभी ये मानव जाति और धरती पल्ल्वित और पुष्पित हो पाएगी।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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