दिखावे की झूठी दुनिया में
सभी बहुत कुछ दिखा रहे हैं
अपने पाप पुण्य के लेखे को
अपने दिखावे से मिटा रहे हैं
पंखे सड़क पार्क शरीरों पर
कब्जा है अमरत्व के वास्ते
ये दान दिखावा किसके लिए
आदमी चल रहा किस रास्ते
काम हो सामाजिक कैसा भी
करेंगें थोड़ा व गिनाएंगे ज्यादा
न ये सेवा ना ही ये परोपकार
ऐसे काम का क्या है फायदा
मृत्यु शाश्वत पर मानता कौन है
जी रहे ऐसे जैसे मरेंगे ही नहीं
प्रभु को मानने का ढोंग रचाते
पर बातें प्रभु की मानेंगें ही नहीं
जैसी करनी वैसी भरनी सत्य है
हर ओर हाय हाय की आँधी है
लोग भूखे नंगे होकर मर रहे हैं
लूट रहे जो उनकी तो चाँदी है
फरेब है सच, झूठ पारखंड है
सेंकते हैं लोग लाशों पे रोटियाँ
इंसानी जानवर से भी बदतर है
जो जिस्म की नोच रहे बोटियाँ
दिखावे की जरूरत क्यों भाई
न फैलाओ हाथ ना ही कामना
देखे काम में जो अपना फायदा
ऐसे लोगों से न हो कभी सामना
ये दिखावा इंसानों की आदत है
बस दिल से करो जो भी करो
ना रुको कभी न थको कभी
मिलेगी मंज़िल न हरगिज़ डरो
मुखौटा
आज हम जहाँ भी अपनी नज़रें घुमाएं हमें हर ओर दिखावे की झूठी चमक की चका चौंध ने हमारे मन में ऐसी जगह बना लिया है कि हम भी वही ज़िंदगी जीना चाहते हैं वो ही सपने देखना चाहते हैं और जिसमें सभी लोग घिरे हुए हैं। हर कोई चाहे वो कोई काम हो बेशक पाप और पुण्य का ही क्यों ना हो अपने दिखावे से मिटाने में लगा है। एक मुखौटा पहन कर हम सभी लोग जी रहे हैं, फिर चाहे वो सोशल मीडिया से लेकर रोज़मर्रा की ज़िंदगी ही क्यूं ना हो।
दिखावा एक स्वप्न जैसा
दिखावा, जैसे एक स्वप्न की तरह है, जो हमें असली सुख से दूर एवं नकली को असलियत में दिखाई देने वाला वो दृश्य है जहाँ हर कोई अपनी ज़िंदगी को दूसरों के समक्ष परोसने में लगा हुआ है। कुछ लोग अपनी सामाजिक पहचान को मजबूत करने के लिए इस कदर दूसरों की नज़रों में बेहद अच्छे बनने का प्रयास करते हैं। लेकिन असलियत यही है कि ये सभी प्रयास केवल एक छलावा हैं। जब हम इस दिखावे की झूठी दुनिया में जीते हैं, तो हम अपने वास्तविक स्वभाव और वास्तविक मूल्यों को खो देते हैं।
दिखावों के पीछे हमारा स्वार्थ
सड़क, पार्क, पंखे और ऐसी हर जगह दिखाई दे रही चमक-दमक और उस पर स्वयं का नाम लिखवाना कि ये दान फलां व्यक्ति द्वारा किया गया है, केवल एक आडंबर है। लोग अच्छे कपड़े पहनते हैं, महंगे दिखने वाले चीजों को अपने जीवन में शामिल करते हैं, और बेहतरीन गाड़ियों में चलते हैं, लेकिन क्या यह वास्तव में उनकी पहचान है? क्या ये दिखावे उन्हें अमरत्व की ओर ले जा रहे हैं? या फिर यह केवल एक क्षणिक संतोष है जो अंदर की खालीपन को नहीं भर सकता? इन दिखावों के पीछे हमारा स्वार्थ छिपा हुआ होता है, जिससे समाज में उनकी छवि बेहतर हो सके। समाज में उनकी जमकर तारीफ हो, प्रशंशा हो उन्हें लोग इज़्ज़त दें, असलियत में ये सब कुछ किसी और के लिए नहीं, बल्कि खुद को दिखाने के लिए होता है।
अपने भीतर की सच्चाई की पहचान
हमें यह अच्छी तरह से समझना होगा कि असली सुख केवल अपने स्वभाव को दिल से स्वीकार करने में है। इस झूठी दुनिया में, जो लोग सच्चे हैं, वही लोग वास्तव में अमर होते हैं और जो लोग छलावा करते हैं उन्हें लोग भूल भी जाते हैं। हमें इस दिखावे की दुनिया से बाहर निकलकर एक अपनी असली पहचान बनाना होगा। असली पुण्य वही है जो बिना किसी दिखावे के किया जाए। बिना किसी लाग लपेट के किया जाए, जब हम अपने भीतर की सच्चाई को पहचान लेंगे, तब हम इस दिखावे की झूठी दुनिया को पार कर पाएंगे।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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