स्वावलम्बी, आत्मनिर्भरता का पहला गुण होता है | Independent बनो |
स्वावलम्बी मनुष्य कभी किसी की दया अथवा कृपा का मोहताज़ नहीं होता, फिर चाहे वो कोई व्यक्ति हो या देश हो। दोनों ही आत्मनिर्भर होने पर अपने लोगों का कल्याण करते हैं और किसी के ऊपर व्यर्थ ही बोझ नहीं बनते हैं। ये कहानी एक वृद्ध और दुर्बल लकड़हारे की है जो इतना ज़्यादा कमज़ोर और बेसहारा होते हुए भी अपनी जीविकोपार्जन के लिये किसी पर निर्भर नहीं था।
एक राजा जो सदैव अपनी प्रजा का हाल चाल जानने हेतु एक दरिद्र का वेश बनाकर राज्य के एक एक कोने में भ्रमण करता था। एक बार जब वह किसी गाँव से होकर जा रहा था, तो उसने देखा कि रास्ते में एक वृद्ध और दुर्बल लकड़हारा सिर पर लकड़ियों का एक बड़ा सा गठ्ठर लिए बाज़ार की ओर चला जा रहा था। राजा, जो कि एक दरिद्र का वेश बनाकर उधर ही घूम रहा था, उसने उस लकड़हारे को देखा और देखते ही उसकी दुर्बल काया और सिर पर लकड़ियों का इतना बड़ा भारी गट्ठर देख दया आ गई। उसने लकड़हारे से कहा- अरे बाबा, आप इतने बूढ़े हो गये हैं, तो भी क्यों इतनी मेहनत करते हैं। क्या आपको कोई कष्ट नहीं होता? जो आप इस उम्र में भी इतना काम कर रहे हैं।
भगवान ने मुझे ये दो हाथ और दो पैर भला किसलिए दिये हैं? आप ही बताइए? भगवान ने मेहनत करने के लिए ही तो दिये हैं और अगर मैं मेहनत ही न करूं तो भला मेरा गुजारा कैसे होगा? लकड़हारे ने बड़े गर्व से उत्तर दिया
आप किसी की मदद क्यों नहीं ले लेते हैं?- राजा ने पूछा
लकड़हारे ने कहा- भाई मैं ठहरा गरीब आदमी। एक बात और मेरी कोई संतान भी नहीं है, मेरी पत्नी भी इस दुनिया में नहीं है, आखिर मेरी मदद भला कौन करेगा?
राजा ने पुनः लकड़हारे से पूछा- पर क्या आपको पता नहीं है?इस राज्य का राजा बहुत दयालु है, जो सदैव गरीब और बेसहारा लोगों की उनकी आवश्यकतानुसार धन देकर उनकी सहायता करता है? आप राजा के पास जा कर उन्हें अपनी परेशानी क्यों नहीं बता देते?, वो अवश्य आपकी सहायता करेंगे।
लकड़हारे ने कहा- भाई साहब मुझे मालूम है और मैं यह भी जानता हूं कि यदि मैं राजा साहब के दरबार में गया, तो यक़ीनन वो मेरी भरपूर सहायता करेंगे, शायद मुझे प्रतिदिन जंगल से लकड़ी काटने और बेचने की भी आवश्यकता ना पड़े। परन्तु जब तक मेरे शरीर में जान है, इस शरीर में कुछ करने की शक्ति बची है, मैं अपने लिए कोई न कोई काम करके पेट भर सकता हूं। आख़िर मैं क्यों राजा की दयादृष्टि का मोहताज बना रहूं। मैं ये हरगिज़ नहीं कर सकता। ये मेरे सिद्धांत के बिल्कुल ख़िलाफ़ है, जब मैं अपनी इच्छापूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर रहूं।
लकड़हारे की बातें सुनकर राजा की आँखें भर आई और उसे बहुत गर्व महसूस हुआ कि उसके राज्य में एक ऐसा भी व्यक्ति है। अपने आंसुओं को छिपाते हुए उसने उस वृद्ध व्यक्ति से कहा- काश आपके जैसे ही राज्य के बाकी दूसरे लोग भी होते, जो स्वयं श्रम करके, धन अर्जित करने वाले हो जाएं तो हर व्यक्ति आपके जैसा ही स्वाभिमान, स्वावलम्बन की प्रतिमूर्ति बन जाएगा। अनावश्यक खर्च से राजकोष पर भी संकट बढ़ता चला जाता है, पर प्रजा इससे बिल्कुल भी वास्ता ना रखते हुए, हर छोटी बड़ी समस्या के लिए दरबार की ओर अपना रुख़ कर लेते हैं, जिससे राज्य का पैसा, समय दोनों बर्बाद होता है, उतने पैसों से राज्य के और भी कई महत्वपूर्ण कार्य किया जा सकते हैं। देश भी और तीव्र गति से विकास करेगा। राजा उस वृद्ध लकड़हारे की विनम्रता, त्याग और आत्मनिर्भर प्रवृत्ति को देखकर नतमस्तक हो गया।
स्वावलम्बी होना इस बात का भी प्रतीक है क्योंकि स्वावलम्बी मनुष्य का सबसे बड़ा गुण यह है कि स्वावलम्बी व्यक्ति निर्भय होकर शेर के समान ही जीवन जीता है। स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने आप में बड़ी सम्पत्ति होता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों से सहायता लेने की बजाए दूसरों की मदद दिल खोल कर करता है।
-दीपक कुमार ‘दीप’
स्वावलम्बी | आत्मनिर्भरता मनुष्य का सबसे 1 गुण | Independent | Self-reliance
स्वावलम्बी बनो
कभी किसी के ऊपर निर्भर रहने से अच्छा है स्वयं इतना मेहनत और परिश्रम करो, कि सफलता ख़ुद ब ख़ुद चल कर आपके करीब आये और आपको अलंकृत करे, उसके लिए व्यक्ति का Self-reliance (आत्मनिर्भर) होना अति आवश्यक है।
Translation in English
Self-reliance is the first quality of self-reliance. Become Independent
A self-reliant man is never dependent on anyone’s mercy or kindness, be it a person or a country. Both of them, being self-reliant, provide welfare to their people and do not become an unnecessary burden on anyone. This story is about an old and weak woodcutter who, despite being so weak and helpless, was not dependent on anyone for his livelihood.
There was a king who always used to visit every corner of his kingdom in the guise of a pauper to know about the condition of his subjects. Once when he was passing through a village, he saw an old and weak woodcutter walking towards the market carrying a big bundle of wood on his head. The king, who was roaming there in the guise of a pauper, He looked at the woodcutter and felt pity on seeing his weak body and the huge bundle of wood on his head. He said to the woodcutter- Oh Baba, you have become so old, why do you still work so hard. Don’t you feel any pain? That’s why you are working so hard even at this age.
Why has God given me these two hands and two legs? You tell me? God has given them to me for hard work and if I don’t work hard then how will I survive? The woodcutter replied proudly.
Why don’t you take help from someone? – the king asked.
The woodcutter said- Brother, I am a poor man. One more thing, I have no children, my wife is also not in this world, after all who will help me?
The king again asked the woodcutter- But don’t you know? The king of this kingdom is very kind, who always helps the poor and helpless people by giving them money as per their need? Why don’t you go to the king and tell him your problem? He will surely help you.
The woodcutter said- Bhai sahab, I know this and I also know that if I go to the court of the king, he will surely help me a lot, maybe I will not even need to cut and sell wood from the forest every day. But as long as there is life in my body, there is power left in this body to do something, I can do some work for myself and fill my stomach. After all, why should I remain dependent on the mercy of the king. I can never do this. This is completely against my principle, when I have to depend on others to fulfill my wishes.
Hearing the words of the woodcutter, the king’s eyes filled with tears and he felt very proud that there is such a person in his kingdom. Hiding his tears, he said to the old man- I wish the rest of the people in the kingdom were like you, who earn money by working hard themselves, then every person will become an embodiment of self-respect and self-reliance like you. Unnecessary expenditure also increases the crisis on the treasury, but the people, not bothered at all about it, turn to the court for every small and big problem, due to which both the money and time of the kingdom are wasted, with that much money, many other important works of the kingdom can be done. The country will also develop at a faster pace. The king bowed down after seeing the humility, sacrifice and self-reliant nature of that old woodcutter.
Being self-reliant is also a symbol of this because the biggest quality of a self-reliant person is that he lives fearlessly like a lion. A self-reliant or self-sufficient person is a great asset in himself. Such a person helps others wholeheartedly instead of taking help from others.
Be self-reliant
Instead of depending on someone, it is better to work so hard that success comes to you by itself and adorns you. For that, it is essential for a person to be self-reliant.
-प्रिय पाठकों से निवेदन (Request to dear readers)
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