एक सच्चा और ईश्वर से जुड़ा हुआ भक्त हमेशा भगवान को प्राथमिकता देता है। फिर चाहे जीवन में हानि हो लाभ हो, यश मिले या अपयश, जीवन के प्रत्येक पल को प्रभु को समर्पित करके ही जीता है। प्रस्तुत पंक्तियों में ईश्वर, प्रभु परमात्मा के अस्तित्व एवं परमात्मा सिमरन, याद के बिना तो यह जीवन भी बेकार लगता है।
बिन तेरे प्रभु ये ज़िन्दगी, हर लम्हा दुशवार है
जुबां पे तेरा नाम न हो, तो ज़िन्दगी बेकार है।
एक ही नूर है सभी में, सारे ही हैं अपने समान
खुश होगा कैसे ये ईश्वर, ग़र सबसे तक़रार है।
मिल गई है उसी को दौलत, इस भरे ज़माने में
कर्म जिसके नेक हैं, और दिल जो वफादार है।
वैर नफ़रत, शिकवे गिले में, क्या रखा है दोस्तों
प्यार से ग़र हम जीएं तो ये ज़िन्दगी गुलज़ार है।
है मुबारक “दीप” उन्हें जो, वक़्त रहते संभल गए
कैसे मिलेगी ख़ुशी उन्हें जिनके मन अहंकार है।
–दीपक कुमार ‘दीप’
बिन तेरे प्रभु
“बिन तेरे प्रभु ये ज़िन्दगी, हर लम्हा दुशवार है
जुबां पे तेरा नाम न हो, तो ज़िन्दगी बेकार है।“
मुसीबत के समय या दुःख के कठिन पलों में अगर कोई हमारा हाथ थामें रहता है तो, मुश्किलों में घिरा हुआ व्यक्ति भी संभल जाता है और अपना धैर्य नहीं खोता है, तब हमें जीवन का असली अर्थ समझ में आता है। यह शब्द व्यक्ति की भावना को नहीं, बल्कि हर इंसान की गहरी इच्छा और अनुभव को व्यक्त करते हैं। “बिन तेरे प्रभु ये ज़िन्दगी, हर लम्हा दुशवार है” यह पंक्ति भी हमारे जीवन की उसी अनकही सच्चाई को सामने लाती है, जो हमें महसूस होती है। हम सभी का जीवन किसी न किसी के साथ जुड़ा होता है—चाहे वह हमारे प्रियजन हों, मित्र हों, या कोई और हमारा बेहद क़रीबी, वह दिव्य सत्ता भी हो सकती है, वैसे आध्यात्म में ईश्वर का संसर्ग या साथ को ही सच्चा हितैषी माना जाता है जिसे हम ‘प्रभु’ या ‘ईश्वर’ के रूप में जानते हैं।
व्यक्ति की याद और उसका साथ ही हमारी मानसिक शांति और सुख का कारण बनता है। लेकिन यदि वह साथ कहीं खो जाता है या दूर हो जाता है, तो जीवन एक निरंतर शून्यता का अहसास करता है। ये स्थिति तब उत्पन्न होती है जब हम अपने प्रभु से दूर हो जाते हैं। बिन तेरे प्रभु अर्थात प्रभु के बिना, यह सारी दुनिया फीकी सी लगती है सारा जीवन सूना लगता है और जीवन के हर क्षण में कठिनाई और अवसाद का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि यह पंक्ति हमारे दिल को गहरे तक छू जाती है, क्योंकि यह न केवल प्रेम और भक्ति की भावनाओं को व्यक्त करती है, बल्कि जीवन के संघर्षों और उनके समाधान की ओर भी इशारा करती है।
बिन तेरे प्रभु, प्रभु के बिना सारा संसार ही सूना है और व्यक्ति के अंदर गुणों का प्रवेश प्रभु की कृपा से आता है।
एक ही नूर
“एक ही नूर है सभी में, सारे ही हैं अपने समान
खुश होगा कैसे ये ईश्वर, ग़र सबसे तक़रार है।“
एक ही नूर, एक प्रभु का अंश प्रत्येक व्यक्ति के अंदर है, जो चीजें हमें दृष्टिगत हो रही हैं और जिसे हम अपनी आँखों से देख नहीं सकते, वे सभी प्रभु की कृपा से ही चलायमान हैं। ईश्वर ने हमें एक समान बनाया है, सभी के शरीर में एक प्रभु परमात्मा की ही शक्ति है, हम सब एक ही नूर से बने हैं। अगर हम अपनी अपनी छोटी-छोटी धारणाओं और घृणाओं से ऊपर उठकर देखें, तो हमारे बीच की दीवारें गिर सकती हैं। मानवता का यही संदेश है—हम सभी एक हैं, और मानवता का उद्देश्य एक ही है: प्रेम, शांति, और समृद्धि का अनुभव करना।
“बिन तेरे प्रभु हर लम्हा दुशवार है” और “एक ही नूर है सभी में, सारे ही हैं अपने समान” ये दोनों पंक्तियाँ हमें जीवन और मानवता के वास्तविक सार से परिचित कराती हैं। इनका संदेश सीधा और स्पष्ट है—प्रभु से दूर होने पर जीवन मुश्किल हो जाता है, और यदि हम एक-दूसरे को समझें और प्यार करें, तो ही समाज में शांति और समृद्धि संभव है। इस सन्देश को अपनाकर हम अपने जीवन को और दूसरों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं, और यही सच्ची भक्ति और मानवता होगी।
बिन तेरे प्रभु, प्रभु के बिना सारा संसार ही सूना है और व्यक्ति के अंदर गुणों का प्रवेश प्रभु की कृपा से आता है। बिन तेरे प्रभु जीवन में कुछ नहीं है, अगर हम अपनी सोच से तकरार और द्वेष को हटाकर प्यार और भाईचारे को बढ़ावा दें, तो न केवल हमारे जीवन में बल्कि पूरे समाज में बदलाव आएगा। बिन तेरे प्रभु ये सब कुछ भी संभव नहीं है।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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