बलात्कार, एक हिंसक और अमानवीय कृत्य है, जो सभ्य समाज के लिए कलंक से बढ़कर कुछ नहीं है। एक ऐसा अपराध जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से पीड़िता को न केवल वर्तमान में, बल्कि जीवनभर के लिए मानसिक व शारीरिक आघात पहुँचाता है, एवं उसके समस्त जीवन को भी प्रभावित करता है।
बलात्कार की घटनाओं ने समाज को हिला दिया है
रेप ने जीते जी परिवार को ज़िंदा लाश बना दिया है।
ना समाज देखता है कभी उन्हें इज़्ज़त की नज़र से
शहर तो शहर गाँव न बच सके इस ज़हर के असर से।
सभ्य समाज में जघन्य पाप से बढ़कर है ऐसे अपराध
बेमौत मारी जा रही बेटियां कलंक है बदनुमा ये दाग़।
डूब गया सूरज क्यों ख़ामोश हो कर इंसानियत का
ये सज़ा है तो कुछ सिरफिरे लोगों की हैवानियत का।
आख़िर मौत से मस्ती का खेल कब तक खेला जायेगा
कब तलक गुनाहों को यूँ ख़ामोश रहकर झेला जायेगा।
ग़र आज भी नहीं जागे हम सभी बढ़ते जुर्म के खिलाफ़
तो क्या कर सकेंगे हम सब कभी अपने आपको माफ़।
आओ हम सभी कसम ये खाएं सभी का सम्मान करेंगे
किसी की भी माँ बहन बेटी का हम नहीं अपमान करेंगे।
भगवान की पूजा करने वालों पूजा करो तो इंसानों की
प्रभुनाम का नशा ही काफी है ज़रूरत नहीं मैखानों की।
“दीप” रहो दूर ख़ुद भी बेशक गुनाह और गुनाहगार से
वैर नफरत को छोड़कर मिलकर रहें हम सभी प्यार से।
–दीपक कुमार ‘दीप’
बलात्कार, एक हिंसक और अमानवीय कृत्य है, जो सभ्य समाज के लिए कलंक से बढ़कर कुछ नहीं है। एक ऐसा अपराध जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से पीड़िता को न केवल वर्तमान में, बल्कि जीवनभर के लिए मानसिक व शारीरिक आघात पहुँचाता है, एवं उसके समस्त जीवन को भी प्रभावित करता है। बलात्कार, किसी व्यक्ति का किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाना या यौन शोषण करना कहलाता है। जो केवल शारीरिक हिंसा नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक शोषण का भी एक घृणित रूप है।
समाज में बलात्कार का दुष्प्रभाव
भारत जैसे देश में, जहाँ महिलाओं की सदैव से पूजा की गई है, उन्हें देवी का स्वरूप मानकर कई विशेष त्योहार भी मनाए जाते हैं, जिनमें कन्या पूजन (नवरात्रि) से लेकर भाई दूज, रक्षाबंधन जैसे पर्व मुख्य हैं। इस मामले में लगातार सरकार एवं भिन्न भिन्न संस्थाओं द्वारा महिलाओं की स्थिति में सुधार की अनगिनत कोशिशें जारी हैं, फिर भी आये दिन बलात्कार की घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं। इसके कारण महिला सुरक्षा को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं। बलात्कार का शिकार होने वाली महिलाएं सिर्फ शारीरिक चोटों का सामना नहीं करतीं, बल्कि उन्हें समाज में हीन भावना, मानसिक तनाव, और सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे मामलों में अक्सर पीड़िता को ही दोषी ठहराया जाता है और रेप करने वालों को बचाने की कोशिश की जाती है, जिससे पीड़िता का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, इसके कारण महिला सदैव डरी डरी रहती है।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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