ये कहानी है एक ऐसे पंडित जी की, जो सदैव ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे, मुसीबत आने पर स्वयं भगवान उनकी सहायता के लिए आये। पढ़िए पूरी कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक पंडित जी रहा करते थे, वे अपनी धर्मपत्नी सहित, दो पुत्रों (बेटों) और एक पुत्री (बेटी) के संग सुखी जीवन का आनंद ले रहे थे। प्रतिदिन मंदिर जाना, भगवान की आरती करना, भोग लगाना और भगवान को नित्य नए नए वस्त्र पहनाना, ये उनकी दिनचर्या बन गई थी। घर आकर भी वो परिवार और बच्चों को समय देने के बाद, भगवत भक्ति में लग जाया करते थे। वो अत्यंत सरल स्वभाव और शांत प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। समस्त परिवार में सुख शांति बनी हुई थी, धीरे धीरे बच्चे भी बड़े होने लगे तो पारिवारिक जिम्मेदारियों का दायित्व भी बढ़ गया, किंतु वो इस बात की बिल्कुल भी चिंता ना करते हुए और ज्यादा से ज्यादा समय प्रभु की भक्ति में लगाने लगे।
विवाह की चिंता
एक समय ऐसा भी आया जब उनकी पुत्री विवाह करने के योग्य हो गई, कई स्थानों से रिश्ते भी घर की चौखट पर आने लगे। उनकी धर्मपत्नी, वैसे तो बहुत ही सरल स्वभाव की थीं फिर भी उन्हें अपनी पुत्री की चिंता थी, कि इसे अच्छा घर और वर मिल जाए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए, वो अपने पति से कहती है, बिटिया विवाह के योग्य हो गई है, काफ़ी लोग बिटिया से रिश्ते लिए घर पर आ रहे हैं। समय पर यदि बिटिया का विवाह नहीं हुआ तो हमारी बड़ी बदनामी होगी, लोग नाना प्रकार के उलाहने (ताने) देंगे- ये कहते हुए उनकी धर्मपत्नी के स्वर धीमे हो गए और आंखों से अश्रु धारा (आंखों से आंसू) बहने लगी।
इतना सुनकर पंडित जी ने पत्नी से कहा चिंता मत करो, भगवान है ना, वो ही हमारे वर्तमान, भूत व भविष्य के ज्ञाता हैं। बिटिया का विवाह जहां होना होगा, समय की दिशा हमें अपने आप उस ओर ले कर चली जाएगी, व्यर्थ चिन्तित न हों आप। इतना कह कर वो मंदिर की ओर चल पड़े और प्रभु की भक्ति में लग गए। ऐसा करते सुनते हुए काफी समय भी बीत गया, पर बिटिया के विवाह हेतु अभी तक कोई योग्य वर नहीं मिला।
आपको तो कोई परवाह ही नहीं है, दिन रात भगवान का भजन रहते करते हो, कीर्तन करते हो, पूजा अर्चना सब कुछ करते हो, फिर भी आपका काम नहीं हो रहा है- पंडित जी के घर आने पर उनकी धर्मपत्नी ने काफी झुंझला कर उनसे कहा।
पंडित जी फिर कुछ नहीं बोले और मुस्कुरा के चल दिए और जाते-जाते कहा- आप नाहक परेशान हो रही हैं।
पत्नी फिर धीरे से कहा- इनको कह के कोई फायदा नहीं है, हे भगवान अब आप ही कुछ करो प्रभु !!
समय ने अपना खेल खेला, कुछ महीने बाद एक सम्पन्न परिवार का एक रिश्ता उनके घर आया, पंडित जी की पत्नी ये अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी, सो दान दहेज़ से लेकर सारी बातें करते हुए विवाह की तिथि भी तय कर डाली।
मैंने बिटिया का विवाह तय कर दिया है, आने वाले दो सप्ताह के भीतर हमें सारे काम संपन्न करने होंगे- शाम को पंडित जी के घर आने पर उनकी धर्मपत्नी ने उनसे कहा
पत्नी की आँखों में ख़ुशी की चमक साफ़. झलक रही थी- ये देख कर पंडित जी ने भगवान का धन्यवाद किया और फिर हरि भजन में लग गए।
इधर विवाह की तारीख़ करीब आ गई, पंडित जी विवाह की तैयारियों को लेकर शहर चले गए किन्तु किन्हीं कारणों से वो विवाह के दिन तक भी अपने घर पहुँच नहीं पाए। भला जाते भी किस मुँह से। एक पिता की जिम्मेदारियों वाला कोई काम कहाँ किया था- मन में ऐसा वो सोच रहे थे।
जैसे जैसे दिन ढलने लगा, अब सभी लोग पंडित जी के बारे में पूछने लगे, पर वो तो वहां थे ही नहीं तो दृष्टिगत होते भी कहाँ।
पत्नी हो गई आश्चर्यचकित
इतनी देर में बाहर से आवाज़ आई- पंडित जी- अरे ओ ….
आवाज़ सुनकर पंडित जी की पत्नी बाहर आई और बोलीं- कहिए, क्या काम है?
तीन बैलगाड़ियों पर ढेर सारा सामान लदा हुआ था, गाड़ीवान ने सामान की ओर इशारा करते हुए पूछा- इन्हें कहाँ रखना है, जल्दी बताइये।
इतना सुनते ही वो बोलीं कि- ये हमारा सामान नहीं है, आपको शायद कहीं और जाना था और आप त्रुटिवश यहाँ आ गए हैं, ये किसी और का सामान है, आप इन्हें ले जाइये।
गाड़ीवान ने कहा- नहीं ये सारा सामान आपका का ही है, उन्होंने शहर से ही ये सारा सामान भिजवाया है
पंडित जी की धर्मपत्नी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि क्या किया जाए, सो उन्होंने गाड़ीवान से कहा- अंदर ही रख दो भैया
गाड़ीवान ने सारा सामान उतार कर घर के अंदर रख दिया और चला गया।
अगले दिन जब सुबह सुबह विदाई से पहले पंडित जी घर पहुंचे, तो पत्नी ने कहा- आपने मुझे एक बार भी सामान के बारे में क्यों नहीं बताया ?
पंडित जी ने पत्नी से पूछा- कौन सा सामान?
अरे! बड़े भोले बनते हैं आप- पत्नी ने हँस कर कहा, सारा सामान पहले स्वयं घर भिजवाते हैं और फिर कहते हैं कि कौन सा सामान?
इस बार पंडित जी ने गंभीर हो कर कहा- कृप्या पूरी बात बताएं
पत्नी ने उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया- सुनने के बाद पंडित से अपने आपको एक कमरे में बंद करके भगवान को कहने लगे कि प्रभु मैं जानता हूँ ये आपने ही सब कुछ किया है।
इधर बेटी की अच्छे से विदाई भी हो गई, पंडित जी की पत्नी बहुत खुश थी ये सारा दृश्य देख कर।
पंडित जी पहले से और ज्यादा प्रभु की भक्ति में लग गए।
शिक्षा:- ये कहानी हमें यही सिखाती है जो व्यक्ति ईश्वर से प्रेम करता है, ईश्वर भी उससे कई गुना प्रेम करते हैं। किन्तु इसका अर्थ ये कदापि नहीं है कि हम कोई काम ही ना करें, काम तो करना ही होगा तभी भगवान भी किसी ना किसी रूप में हमारी मदद करेगा।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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