बुलंद हैं इरादे, दुश्मनी के आज
कैसे बनाएं रिश्ते, दोस्ती के आज।
हिंसा हवस में, है भूख दौलत की
मक़सद बने हैं, जिंदगी के आज।
सूरत मिली सीरत नहीं अफ़सोस
ये सलीक़ा नहीं है बंदगी के आज।
शक्ल सूरत में मानवता नहीं बसी
परिभाषा है नहीं आदमी के आज।
नफरत भरे दिल में, ‘दीप’ न जला
ना प्यार हुआ, इसी कमी के आज।
कठिन शब्द-
सीरत- गुण
सलीक़ा- ढंग
बंदगी- पूजा
-दीपक कुमार ‘दीप’
कैसे बनाएं रिश्ते
आज हर जगह पर अक्सर ये देखने और सुनने को मिल ही जाता है, फलां व्यक्ति का स्वभाव ठीक नहीं है, बात बात पर चिल्लाता है, बेवज़ह सभी से नाराज़ रहता है। ऐसा व्यक्ति समाज में आख़िर भला क्या योगदान देता होगा? सिवाय लोगों के ताने सुनने के। इस ग़ज़ल में मैंने यही बात कहने का प्रयास किया है, आज हर तरफ़ लड़ाई-झगड़े, मारपीट और दुश्मनी का माहौल बना हुआ है, ऐसे में आप किसी से भी दोस्ती की उम्मीद कैसे रख सकते हैं, कैसे एक मुक़म्मल रिश्ते बना सकते हैं, वर्तमान परिदृश्य में कितना कुछ बदल गया है। दोस्ती और दुश्मनी का अन्तर ही समझ से परे हो गया है।
भूख दौलत की
“दौलत की दो लात है, तुलसी निश्चय कीन,।। आए तो अन्धा करे, जाए मति मलीन ।। “
इन पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने कहा है कि- दौलत पाने की होड़ में लगा हुआ व्यक्ति इस तरह अन्धा हो जाता है कि उसे सही ग़लत, अच्छे-बुरे की भी साधारण सी समझ बाकी नहीं रह जाती है। इन्हीं पंक्तियों को समर्थन देती हुई मेरी अगली लाइन यही है, जिसमें यह बताया गया है कि इनके ही कारण आज समाज में हर तरफ़ एक दौड़ लगी हुई है, और शायद ज़िदगी का सबसे कड़वा और अंतिम सत्य यही है जिसे आज इंसान समझा हुआ है, ज़िन्दगी का सुकून।
आज बदले हुए हालात यही गवाही दे रहे हैं मानवता भी एक कल्पना मात्र ही रह गई है, जो किसी को सुनाने अथवा सुनने तक ही सीमित रह गई है, जो आज के समय की परिभाषा बन गई है। इन्हीं कारणों से समाज की दिशा और दशा दोनों ही बदली हुई नज़र आती है, ना प्रेम है, ना लगाव है, ना ही शुद्ध भावनाएं हैं किसी के प्रति, जो भी है उसमें भी दिखावा ही है। लोग इसे भी उतना ही समझते हैं जितना हम ये सोचते हैं कि सामने वाला हमारे बारे में क्या सोचता है, मानवता के लिए सबसे बड़ी कमी के रूप में यही बात सामने आती है।
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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