आखिर क्यों है ऐसा इंसान? | पशु पक्षी भी हैं जिससे हैरान परेशान | Motivational Poem | Universal Truth
आसमान में सितारों को
कभी किसी से लड़ते देखा है?
क्या सूरज चंदा तारों को
रौशनी देने से अड़ते देखा है।
क्या शिकायत की है हवा ने
कि मैं मुफ़्त में क्यों बहुं
नदी के शीतल जल से पूछो
क्या कभी इनकार किया उसने
अपना जल देने से..
पशु पक्षी भी अपने अनुसार
सेवा जगत की करते हैं
पेड़ पौधे सभी के लिए है
धूप, छाँव, हवा कभी भी
वर्ण, जाति, देख नहीं देते..
किंतू,
ये इंसान ही ऐसा क्यों
अपनी ख़ुदग़र्ज़ लालसाओं में
दूसरों का सुख चैन छीन रहा
‘मानवता’ शब्द की तो इसने
हिंसा ही कर डाली है।
आखिर क्यों है ऐसा इंसान।
हम भी अपने अहम को त्यागें
और मानवता अपनाएं
जितना हो हम सबसे,
पर सेवा से पुण्य कमाएं
लड़ें ना हम बात बात पर
प्रेम से हर बात सुलझाएं
जब एक प्रभु के बच्चे हैं हम
फिर कैसा है झगड़ा
निंदा नफरत को छोड़ के
हर मानव को गले लगायें
छोटे बड़े की बातें अब
रहने ही दे हम किताबों में
सच्चा प्यार करके सबसे
जीवन अपना सफल बनाएं।
आखिर क्यों के इस सवाल को
हम जहां में फिर क्यों दोहराएं
कर्म ऐसा बनें हमारा जाएं जहाँ
अपना व देश का गौरव बढ़ाएं
दिल से दिल को जोड़ें हम सब
मन में फैले अंधेरों को ‘दीप’
बड़े अदब से मिलके दूर भगाएं
–दीपक कुमार ‘दीप’
आखिर क्यों? | Motivational | Universal Truth
आदमी कहें या इंसान दोनों शब्द के होने या ना होने का कोई ज्यादा अर्थ और तर्क ज़्यादातर लोगों को समझ नहीं आया है, क्यूंकि काम तो इंसानों ने बहुत किये हैं जिससे समाज और देश की उन्नति हुई है, देश ऊँचाइयों पर पहुँचा है, साथ ही साथ कुछ ऐसी प्रवृत्तियों और ग़लतियों ने इंसान को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया है, जिससे मानवता ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सृष्टि भी शर्मसार हुई है।
सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, जल, धूप, हवा, मिट्टी, वर्षा ये सभी इंसान को बिना रंग-भेद, भाषा के अपनी अपनी सेवायें दिए चले जा रहे हैं। इन्होने कभी हमसे नहीं पूछा हमारा धर्म क्या है? हम किस देश के रहने वाले हैं? हमारी जाति कौन सी है? हम स्त्री हैं अथवा पुरुष। सभी को एक समान पल्ल्वित और पुष्पित किया है और जब तक पृथ्वी रहेगी और उस पर रहने वाला ये इंसान अथवा ये सारी प्रकृति रहेगी, तब तक ये सभी अपनी भरपूर सेवायें देते रहेंगे।
इसके विपरीत इंसानों ने प्रकृति को क्या दिया है? जो प्रकृति के पास था, वो तो छीना ही साथ ही साथ धरती पर रहने वालों का भी जीना दुश्वार कर दिया है।
प्रस्तुत इस कविता में सभी बिंदुओं को छूने का प्रयास किया है, जिससे मानवता के ऊपर एक प्रश्नचिन्ह लग जाता है। आखिर क्यों है इंसान ऐसा?
-प्रिय पाठकों से निवेदन
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